Saturday 5 January 2013

मायने बदल गऐ

वो परिंदा उड़ नहीं पा रहा था
दौड़े जा रहा था दौड़े जा रहा था।
अचानक पंख फैले और ठहर गया
थक गया वो, अब मरा वो अब मरा।
कभी चोंच राह की गर्द में दब जाती
कभी थके पाँव लड़खड़ाते
कंकड़ पत्थर की राहों से चोट खाकर
खून से लथपथ परिंदा अब ठहर गया।
इतने में शिकारियों ने उसे घेर लिया

"मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
 देखूं  तो  इंसानियत  के  मायने  बदल  गऐ।"

तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
परिंदे ने पहली उड़ान भरी
और खून के छींटे
उन सभी के मुंह पर दे मारे।

By : "रोहित"
                                                                 



24 comments:

  1. वाह गुढ चिँतन

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  2. वाह रोहित भाई वाह ये पंक्ति बेहद खूबसूरत, असरदार और गजब की है बधाई मित्रवर बधाई

    "मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
    देखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"

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  3. तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
    परिंदे ने पहली उठान भरी
    और खून के छींटे
    उन सभी के मुंह पर दे मारे।

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,बधाई,,,

    recent post: वह सुनयना थी,

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  4. गहन भाव.....
    अच्छी रचना.

    परिंदे ने पहली "उठान" भरी...यहाँ "उड़ान" कर लीजिए.और दोडे को दौड़े करें..
    अच्छी रचना में टंकण त्रुटियाँ अखरती हैं.
    अनु

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    1. Thank You Anu ji ...
      yun hi har galtiyon par tokte rahiyega ... apne pan ka bhav ghalkta hai..

      : )

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  5. शुभकामनायें-
    प्रभावी प्रस्तुति|

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  6. बहुत प्रभावशाली रचना..इसे पढ़ते ही उसी घटना की तरफ ध्यान चला गया...पंछी उड़ ही चुका है..

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  7. गहन अभिव्यक्ति...सुंदर रचना !!

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  8. तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
    परिंदे ने पहली उड़ान भरी
    और खून के छींटे
    उन सभी के मुंह पर दे मारे।

    फिर भी उन्हें शर्म न आई !
    अच्छी कृति !

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  9. बेहद सशक्त रूपकात्मक अभिव्यक्ति अपने वक्त को ललकारती फुंफकारती सी .

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  10. Sundar Rachna...Badhai sweekarey..

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  11. वाह ................कमाल का चिंतन

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  12. बिल्कुल सही कहा आपने .सार्थक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .


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  13. jo paristitiyan hame mar n saken ...par pane me gazab ka hausla deti hain...badhiya..

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  14. हौसला बुलंद होना चाहिए...
    बहुत अच्छी रचना Rohitas !!!:)

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  15. तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
    परिंदे ने पहली उड़ान भरी
    और खून के छींटे
    उन सभी के मुंह पर दे मारे।

    ...वाह! गहन भाव लिए सुन्दर रचना...

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  16. आस और जीवट कीसकारात्मक सोच की जोश की रचना .

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  17. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति...

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  18. खून के छींटे तो लगना ही था.- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  19. तभी सर्द फिजां में गजब हो गया
    परिंदे ने पहली उड़ान भरी
    और खून के छींटे
    उन सभी के मुंह पर दे मारे।
    ...सम्वेदनहीन होती मानवता को जगाने का यह एक प्रयास हो सकता है ..
    मार्मिक प्रस्तुति ..

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  21. मंजरे-कातिल-तमाशबीन बनकर कुछ लोग ठहर गये
    देखूं तो इंसानियत के मायने बदल गऐ।"
    क्या कहूं ? निशब्द हूँ !

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